आरडीआर का भुगतान सरकार क्यों करे?

अपने वकील को फीस, तो अपनी पार्टी को क्यों नहीं? 

वकील को फीस वह व्यक्ति देता है, वकील जिसका मुकदमा लड़ता है। राजनीतिक पार्टियां जनता की वकील होती हैं। लेकिन जनता के इन वकीलों की फीस जनता नहीं देती, खरबपति लोग देते हैं। इसलिए वकील उसके लिए काम करते हैं, जिससे फीस पाते हैं। इसीलिए पार्टियों और सरकारों के बदलने के बाद भी लोकतंत्र में “लोक” की दुर्दशा सदा सदा बनी रहती है। अधिकार और न्याय कानून की किताबों में लिखे रहते हैं, लेकिन लोगों को मिलते नहीं है। आम जनता को न्याय दिलाने वाला कोई भी सुधार परवान नहीं चढ़ता। यह सब इसलिए होता है क्योंकि लोकतंत्र की खोज तो हुई, लेकिन लोकतंत्र किस पैसे से चलेगा, इसकी खोज नहीं हुई। आरडीआर इसी कमी को पूरा करने के लिए खोजा गया नया उपाय है।

गरीबों के वकीलों का खर्च सरकार उठाती है तो गरीबों की पार्टियों का क्यों नहीं? 

जिस प्रकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालतों में काम करने वाले वकीलों को सरकार पैसा देती है; उसी प्रकार आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों के आर्थिक व राजनीतिक हितों की वकालत करने वाले राजनीतिक दलों को भी सरकार द्वारा पैसा दिया जाना चाहिए। किन्तु यह धन राजनीतिक दलों को सीधे सरकार से न मिलकर पार्टियों के आर्थिक रूप से कमजोर कार्यकर्ताओं के माध्यम से मिलना चाहिए। इस प्रकार राजनीतिक दलों को अपने प्रत्येक सदस्य और समर्थकों द्वारा पैसा मिलाना चाहिए, न कि केवल कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा।